# आज की दुनिया

(Aaj Ki Duniya)

आज कल लोगो मे मैंने एक नयी चीज़ देखि है। यह ज़माना एक विचित्र सोच का ज़माना है। इस ज़माने मे मशीन इंसानो से ज़्यादा महवपूर्ण है। लोग इंसानो से ज्यादा मोबाइल फ़ोन के साथ वक़्त बिताना पसंद करते हैं। लोग अपनी आँखों के सामने फैली हुई दूनिया से ज़्यादा इंटरनेट की काल्पनिक दुनिया को देखना ज़्यादा पसंद करते हैं। पर आखिर इस काल्पनिक दुनिया मई ऐसा क्या खास है जो की हकीकत से ज़्यादा लोक प्रिये है? इस प्रशन का उत्तर देना कठिन है। आज व्यक्ति अपने पडोसी से ज्यादा फेसबुक पर नए लोगो से बात करना ज़्यादा पसंद करता है। ऐसा नही है की पडोसी ख़राब व्यक्ति है परंतु उसे पडोसी से बात करने मे कोई दिलचस्पी ही नही है। वह कितने ही नए लोगो से फेसबुक पर बात कर लेगा लेकिन अपने पडोसी से "हेल्लो हाई" करने मे भी उसे मौत आयेगी। हमे यह बात भले ही समझ न अये, परंतु हम धीरे धीरे मशीनो के कठपुतली होते जा रहे है। हो सकता है आपको बुरा लगा हो, पर यही सच है। उदाहरण अनेक हैं। पहले का व्यक्ति सूर्ये की पहेली किरण के साथ उठता था, परंतु आज का व्यक्ति मोबाइल के अलार्म (एक मशीन) के माध्यम से उठता है। पहले का व्यक्ति ही नही हर पशु आज भी सुबह की पहेली किरण के साथ ही उठता है। पर आज का व्यक्ति जो अपने आप को ज्यादा होशियार और स्मार्ट समझता है असल मे मशीनो का गुलाम है। यही मशीन आज इंसान को इंसान से अलग कर रहे हैं। कहने को इंटेरनेट "ग्लोबलाइजेशन" का प्रतीक माना जाता है, परंतु वही वह दैत्य है जो आज इंसान जाती को खाता जा रहा है। यही इंटेरनेट आज इंसान के अंदर डिप्रेशन का मुख्य कारण बन चूका है। हर व्यक्ति आज अपने आप को दूसरों के सामने खुश दिखाना चाहता है। इसी वजह से वह जो कुछ भी शेयर करता है उसमे अपने को खुश दिखाता है। ऐसे ही हज़ारों लोग जब अपने को अच्छा दिखाते हैं तोह यह दुनिया अच्छी लगने लगती है। ऐसा लगता है कि सब खुश हैं। इन्ही सब को जब दूसरा अन्य व्यक्ति देखता है तोह उसे भी अपने को खुश दिखाने की जरुरत महसूस होती है। वह अपने को उसी तरह से बदलना शुरू करता है, जिससे वो भी अपने को खुश दिखा सके। बस यही बात मुझे समझ नही आती।

हर व्यक्ति अलग है, उसकी सोच अलग है। उसकी पसंद अलग है। उसे जरुरी नही जो अच्छा लगे वह समाज को भी अच्छा लगे। फिर वह क्यों अपने को बदलना चाहता है, क्यों खुश दिखना चाहता है?

वह इसीलए की उसे डर है। डर इस बात का की वह कहीं इस दौड़ मे पीछे न रह जाये। कहीं वह समाज से कट न जाये। यह एक साधारण मानव प्रवर्ति है। कौन ही अपने को पिछड़ा हुआ दिखाना चाहता है? ज़माने से कदम से कदम मिला कर चलना बुरा नही है। परंतु उसके लिए खुद को बदलना भी गलत है। इस संसार मे हर चीज़ का कुछ स्टैंडर्ड बन गया है। जैसे की कोई आपसे पूछे आप फेसबुक पे हो और आप मना कर दो, उसी षंड उस व्यक्ति के मुख पर मूर्छा आ जायेगी। वह आपको हेय दृष्टि से देखने लगेगा। वह क्यों चिड़ा? वह इसीलिए की हम सबने एक स्टैण्डर्ड बना लिया है। वह व्यक्ति फेसबुक पर नही है तोह वह पिछड़ा हुआ है। अब आप खुद ही सोचो की क्या उसका फेसबुक पर न होना उसका पिछड़ापन दिखाता है? यह किसने कहा फेसबुक पर न होना गलत है।

यह प्रवर्ति अमीर व्यक्तियों मे ज़्यादा देखने को मिलती है। अमीर लोग अपने हिसाब से अपने स्टैण्डर्ड बना लेते हैं, और हर व्यक्ति को उन्ही स्टैण्डर्ड से तोलते हैं। शायद इसी लिए अमीर पैसा होते हुए भी न खुश है, और गरीब बिन पैसे के भी खुश। गरीब व्यक्ति इसलिए खुश है की उसने अपनी ज़िन्दगी मे कोई स्टैण्डर्ड नही बनाया। वह सब को ख़ुशी से देखता है। सबसे ख़ुशी ख़ुशी बात करता है। यह फर्क गाँव और शहर मे आपको आसानी से देखने को मिल जायेगा। आप सोच रहे होंगे की बात कहाँ से कहाँ जा रही है,परंतु इन् सब मे एक चीज़ सामान्य है- इंटेनेर्ट। गरीब के पास न पैसा है, न इन्टरनेट, तभी वह ज़्यादा खुश है। मेरी इन्टरनेट से कोई दुश्मनी नही है न ही फेसबुक से। परंतु इसी इन्टरनेट ने कुछ ऐसे स्टैण्डर्ड बना दिए हैं जो की सही हैं या नही ये नही पता, पर यदि आप उस स्टैण्डर्ड से नही चलोगे तोह ये दुनिया आपको पसंद नही करेगी। अब सोचना आपका है की क्या अमीर व्यक्ति अच्छा है या गरीब।

मुद्दे की बात यह है की इंसान को खुद के स्टैंडर्ड पर जीना चाहिए न की समाज के। समाज तोह सीधा चलो तोह भी बेवक़ूफ़ कहेगा और टेढ़ा जायेगा तोह भी मुर्ख बोलेगा।

इंसान जैसा है उसे वैसा ही रहना चाहिए। पैसा होना, अच्छे कपडे पहनना , दो चार सोशल अकाउंट रखना इंसान को समझदार और बड़ा नही बनाता। किसी ने सही कहा है -

"जन्म से कोई नीच नही है, जनम से कोई महान नही, करम से बढ़कर किसी मनुष्य की, कोई भी पहचान नही।"

Ayush P Gupta
08 Aug 2018